कहानी

कोर्ट में तेंदुआ

लेखक: अजय आनंद

राकेश कुमार घायल को अपने नाम पर बड़ा गुमान था। राकेश नाम उसके माता पिता ने रखा था और आधुनिक खयालों का होने के कारण सरनेम यानि उपनाम की जगह कुमार लिख दिया था। शायद अपने जमाने के फिल्मी सितारों में कुमार सरनेम से बहुत प्रभावित रहे होंगे।

बाद में जब राकेश को किशोरावस्था में होने वाले आत्मज्ञान के अतिरेक से यह लगा कि उसके दिमाग में साहित्यकार का भूत प्रवेश कर चुका है तो वह आखिर में घायल लगाकर अपने आप को साहित्य का पुजारी साबित करने लगा। यह बात अलग है कि बारहवीं और उसके आगे ग्रैजुएशन की पढ़ाई में जीव विज्ञान उसका मुख्य विषय था।

जब कई बार मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा में असफलता ही हाथ लगी और ग्रैजुएशन के कई वर्षों तक माथे पर बेरोजगारी का धब्बा लगा रहा तो उसने परिस्थितियों से समझौता करने में अपनी भलाई समझी और दवा बनाने वाली किसी कंपनी में एमआर यानि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव बन गया। जीव विज्ञान पढ़ने वाले ज्यादातर युवक की यही परिणति होती है। उसके बाद उसके जीवन की गाड़ी ठीक ठाक गति से चलने लगी और फिर अनुकूल समय आने पर विवाह हुआ और उसके बाद वह दो बच्चों का बाप भी बन गया।

अपने शहर से किसी अन्य शहर में पोस्टिंग होने के कारण उसे किराये के मकान में रहना पड़ रहा था जिसके कारण बचत की गुंजाइश कम ही बचती थी। वह अपने उन दोस्तों से जलता था जिनकी पोस्टिंग उनके होमटाउन में होने के कारण उन्हें परिवार चलाने की जिम्मेदारी से लगभग मुक्ति मिली हुई थी।

उस दिन सुबह जब वह नहाधोकर काम पर जाने के लिए सज धज रहा था तभी उसके मकान मालिक का फोन आ गया। जो भी आदमी सेल्स का काम करने वालों को जानता है उसे सजने धजने का मतलब जरूर मालूम होगा। खासकर मेडिकल सेल्स में काम करने वालों के लिए साफ सुथरे फॉर्मल ड्रेस में सजना यानि पतलून और उसके भीतर ठीक से खोंसी हुई कमीज पहनना बहुत जरूरी हो जाता है। साथ में चमड़े के जूते जो काले या फिर गहरे भूरे रंग के होने चाहिए। उसके ऊपर अगर टाई लग जाए तो फिर सोने पर सुहागा।

आखिर इन लोगों को समाज के ऐसे विद्वान व्यक्ति से मिलना होता है जिसके ज्ञान और हुनर के आगे बड़े बड़े आला अधिकारी और मंत्री भी सिर झुकाते हैं। दुनिया में भला कौन ऐसा आदमी होगा जिसका पाला डॉक्टर से नहीं पड़ता होगा।

बहरहाल, मकान मालिक ने फोन करके यह बताया कि लॉकडाउन के कारण पिछले दो वर्षों से किराया नहीं बढ़ा है इसलिए इस बार किराया कम से कम बीस प्रतिशत बढ़ाना होगा। मकान मालिक ने यह निर्देश भी दिया कि तत्काल कोर्ट जाकर एक रेंट एग्रीमेंट बनवा ले और फिर उसे लेकर शाम तक मकान मालिक तक पहुँचा दे।

बेचारा राकेश यह सुनकर कुछ ज्यादा ही घायल हो चुका था। लॉकडाउन के वर्षों में दवा की सेल के लिए सोचना ही नहीं पड़ा था। हर महीने वह कम्पनी द्वारा दिए टार्गेट से बहुत ज्यादा सेल करता था और उसके एवज में इंसेंटिव भी कमाया था।

लेकिन अब तो कोरोना की हवा निकल चुकी थी और टार्गेट आसमान छू रहा था। हर कोई अपनी सेहत को लेकर इतना जागरूक हो चुका था कि कोई बीमार ही नहीं पड़ रहा था। डॉक्टरों की क्लीनिक के सामने सन्नाटा पसरने लगा था। अस्पतालों में भी अब पहले जैसी भीड़ नहीं रह गई थी। राकेश को लगता था कि नौकरी अब गई तो तब गई। ऐसे में किराये में बीस फीसदी की बढ़ोतरी का फरमान सुनकर उसे जैसे काठ मार गया।

उसने मकान मालिक से व्यस्त होने का बहाना बनाया और बताया कि उसके मैनेजर के साथ ज्वायंट वर्किंग है लेकिन मकान मालिक ने उसकी एक न सुनी। अब मकान बदलने में बहुत परेशानी होती है और खर्चा भी बहुत होता है। नये मकान में जाने के लिए दो महीने का एडवांस किराया और एक महीने की सिक्योरिटी रकम जमा करनी पड़ती है। उसके बाद सामान ढ़ुलाई का खर्चा अलग से। अगर आस पास मकान न मिला तो फिर बच्चों के स्कूल बदलवाने का भी खर्चा सामने मुँह बाए खड़ा रहता है। सो राकेश अनमने ढ़ंग से उठा और चल पड़ा कचहरी रोड की ओर जहाँ लगभग सभी सरकारी महकमे थे, जैसे कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का ऑफिस, कोर्ट, आदि।

कोर्ट के पास पहुँचकर राकेश ने अपनी मोटरसाइकिल पार्किंग में लगाई और पार्किंग वाले लड़के से उसकी पर्ची ले ली। आगे कुछ दूर बढ़ने पर कोर्ट का माहौल शुरु हो चुका था। पतली सड़क पर लोग एक दूसरे से रगड़ खाते हुए चल रहे थे। उसी भीड़ में से कुछ दोपहिया वाहन वाले अपने शरीर को आड़ा तिरछा करके रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ रहे थे।

जहाँ कभी फुटपाथ रहा होगा वहाँ ठेलों पर सजी दुकानों से पान मसाले की पुड़िया हवा में हिल डुल कर चमचमा रही थीं और लोगों को रिझा रही थीं। उन्हीं ठेलों के साथ उन वकीलों की दुकानें सजी थीं जो शपथ पत्र, किरायानामा और अन्य जरूरी कागजात बनवाने के धंधे में लगे हुए थे। चाय पान वाले तो चुपचाप बैठे थे लेकिन वकील लोग ग्राहकों को बुलाने के लिए ऐसे आवाज लगा रहे थे जैसे सब्जी मंडी में सब्जी वाले या फिर मछली बाजार में मछली वाली लगाती है।

राकेश चलते चलते वैसे ही किसी एक वकील की दुकान या ऑफिस के पास रुका और उससे रेंट एग्रीमेंट बनवाने की फीस के बारे में पूछताछ करने लगा। वहाँ पर ऑफिस के नाम पर नाली के ऊपर रखी एक पुरानी डेस्क थी जिसके ऊपर लगे लैमिनेट का रंग कब का उड़ चुका था। लैमिनेट एकाध जगह से गायब भी हो चुका था। डेस्क पर फाइलों और रजिस्टरों की ढ़ेर रखी थी। डेस्क के पीछे एक गद्देदार कुर्सी थी जिसका गद्दा फटा हुआ था और जिसका एक हत्था टूट चुका था। वकील की पीठ को सहारा देने के लिए एक तकिया रखा हुआ था जो पसीने और मैल से लथपथ था। उस कुर्सी की बगल में दो तीन स्टूल रखे हुए थे जिनमें से एक स्टूल खाली था और उसी स्टूल पर राकेश को आसन प्रदान किया गया।

राकेश को एक फॉर्म जैसा कागज दिया गया जिसपर उसे अपना नाम, पिता का नाम, पता, मकान मालिक का नाम, उसके पिता का नाम, आदि लिखने को कहा गया। राकेश जरूरी जानकारियाँ भरने में व्यस्त हो गया तभी कोर्ट के भीतर से बहुत शोर होने लगा। वैसे तो कोर्ट कचहरी में दिन के वक्त हमेशा शोरगुल ही होता है लेकिन अब उससे कहीं अधिक हो हल्ला होने लगा।

अंदर से कई लोग बेतहाशा बाहर की ओर भाग रहे थे। जिसे देखो सिर पर पांव लेकर भाग रहा था। हर तरफ अफरातफरी मची हुई थी। बाहर खड़े लोग यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि माजरा क्या था। थोड़ी देर बाद किसी ने बताया कि अंदर बंदरों ने हमला कर दिया है और लोगों को नोच खसोट रहे हैं।

इस शहर में बंदर शायद सदियों से रहते हैं और शायद ही किसी को कुछ करते हैं। अब आस पास कहीं पेड़ तो बचे नहीं हैं इसलिए शहर ही ऐसी जगह है जहाँ बंदरों को भोजन मिलने की गारंटी होती है। कुछ लोग डर से तो कुछ धार्मिक भावना से बंदरों के आगे खाना डाल देते हैं। उससे काम नहीं चलता है तो बंदर फल और सब्जी वालों से जरूरत की फल सब्जियाँ उड़ा ही लेते हैं। कभी कभार मौका मिलने पर किसी की रसोई में डाका भी डाल देते हैं। लेकिन बंदरों ने भी इंसानों के साथ सहजीविता का पाठ अच्छी तरह से सीख लिया है। इसलिए बंदरों के हमले वाली बात सुनकर राकेश को बड़ा ताज्जुब हो रहा था।

कोर्ट के कैम्पस में जब भीड़ कम हो गई तो स्थिति का जायजा लेने के खयाल से राकेश कुमार घायल उस बिल्डिंग में चला गया जहाँ कोर्ट चलती है यानि जहाँ जज साहब की कचहरी लगती है। निचली मंजिल पर बिलकुल शांति थी। जज साहब की कचहरी का दरवाजा भीतर से बंद था और उसे थोड़ा अलगा कर एक आदमी बार बार बाहर देखने की कोशिश कर रहा था। उसकी सफेद पगड़ी के ऊपर लगी लाल कलगी से पता चलता था कि यह वही आदमी था जो दरवाजे के बाहर आकर पेशी के लिए लोगों को आवाज लगाकर कहता है, फलाँना वल्द ठिकाना हाजिर हो।

निचली मंजिल पर सबकुछ शांत देखने के बाद राकेश जीने से होते हुए पहली मंजिल पर पहुँचा। वहाँ का नजारा बिलकुल अलग था। ज्यादातर लोग किसी न किसी कमरे के भीतर बंद थे। हॉल में आठ दस लोग रहे होंगे। एक कोने में एक हट्टा कट्टा तेंदुआ ऐसी मुद्रा में था जैसे किसी शिकार पर झपट्टा मारने की ताक में हो।

उसके सामने कोई पाँच छ: फीट की दूरी पर एक आदमी एक फावड़ा लेकर उससे दो दो हाथ करने को उतारु था। उस आदमी के काले कोट और सफेद कमीज से साफ पता चलता था कि वह पेशे से वकील था। उसके ठीक पीछे चार पाँच लोग और थे और वे सारे के सारे वकील ही थे। उन सबसे पीछे खड़े लोग बाग दीवार से पीठ लगाए खड़े थे और सबने अपने आगे कुर्सियों की ढ़ाल बना रखी थी।

कोई कह रहा था, अबे, कोर्ट के भीतर वकील से पंगा लेने की जुर्रत कोई नहीं करता। पुलिस वाले भी यहाँ आकर हमसे तमीज से पेश आते हैं। ऐसा मजा चखाओ कि फिर कभी कोर्ट की तरफ झाँकने की हिम्मत न हो।

उधर फावड़ाधारी वकील उस तेंदुए की ओर लपका। तेंदुआ भी चक्कर खा गया। आज तक उसने जब भी अपने शिकार पर हमला किया होगा हमेशा उसका शिकार जान बचाकर भागने की फिराक में ही रहा होगा। किसी ने कभी भी पलटवार करने की हिम्मत नहीं की होगी। आस पास जो थोड़ा बहुत जंगल बचा है उसमें तेंदुए से बड़ा शिकारी कोई नहीं है। शेर और बाघ जिन जंगलों में रहते हैं वे यहाँ से सैंकड़ों किलोमीटर दूर हैं।

खैर, तेंदुए ने अपनी घबराहट को पीछे छोड़ा और वकील साहब पर कूद पड़ा। फिर क्या था, कभी तेंदुआ ऊपर और वकील नीचे तो कभी वकील ऊपर और तेंदुआ नीचे। कभी तेंदुआ गुर्राता था तो कभी वकील चिल्लाता था। डर दोनों को लग रहा था। तेंदुए ने अपने जीवन में शायद ही कभी इतने इंसानों को एक साथ देखा होगा। वह बेचारा तो ऐसे ही रास्ता भटक कर शहर की तरफ आ गया था।

तेंदुए और वकील की उस गुत्थमगुत्थी में लोगों को मजा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था। कुछ लोग इतनी हिम्मत जुटा ले रहे थे कि अपने अपने मोबाइल फोन पर उसकी वीडियो भी बना रहे थे। राकेश भी उनमें से एक था। बाकियों का तो पता नहीं लेकिन राकेश सोच रहा था, एक बार यह वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाए फिर इतनी कमाई होगी कि अपनी नौकरी को आराम से लात मार दूँगा।

इस बीच तेंदुए ने वकील साहब को बुरी तरह लहु लुहान कर दिया था। डर के मारे कोई भी वकील को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा था। तभी जीने से कुछ लोगों के ऊपर चढ़ने की आवाज आने लगी। पता चला कि वन विभाग के लोग थे। लगता है किसी ने वन विभाग को फोन करके बताया होगा।

लगता है उन्हें देखते ही तेंदुआ झट से पहचान गया और वहाँ से तेजी से भागा और जाकर उस मशीन के पीछे छुप गया जिससे पीने का ठंडा पानी निकलता है। वन विभाग वाले एक घेरा बनाते हुए तेंदुए की तरफ बढ़ने लगे और जाकर झट से उस ग्रिल को बंद कर दिया जो उस गैलरी में लगी थी जिसमें अभी तेंदुआ छुपा हुआ था। ग्रिल बंद होते ही वहाँ मौजूद दर्शकों ने राहत की साँस ली और सब करीब पहुँचकर उस माजरे को देखने में मशगूल हो गए। वन विभाग के लोगों में से एक आदमी जो उनके अफसर की तरह रोबदार दिखता था ने लोगों को भारी आवाज में डाँटा और दूर रहने को कहा। दर्शक लोग दो तीन कदम पीछे हट गए।

उसके बाद वन विभाग के एक आदमी ने एक लंबी सी बंदूक निकाली और उसमें गोली डाली जो आम गोलियों से बहुत लंबी दिख रही थी और जिसके पीछे लाल रंग की दुम थी और उस दुम के सिरे पर लाल पंख लगे हुए थे। उस आदमी ने निशाना साधा और तेंदुए पर दाग दिया। पता चला कि वह गोली नहीं थी बल्कि उसमें बेहोशी की दवाई भरी थी। गोली लगते ही तेंदुआ जोर से गुर्राया। थोड़ी देर में तेंदुए की गुर्राहट मद्धिम पड़ती गई और फिर तेंदुआ बेहोश हो गया। उसके बाद वन विभाग के लोगों ने उसे जाल में लपेटा और अपने कंधों पर लादकर नीचे लगी पिक अप वैन में पटक दिया।

पिक अप वैन के चारों तरफ अच्छा खासा मजमा लगा हुआ था। कुछ टेलिविजन चैनल के रिपोर्टर भी वहाँ जमा हो चुके थे। हर कोई अपने अपने तरीके से ब्रेकिंग न्यूज के लिए कॉमेंट्री कर रहा था।

गाजियाबाद के कोर्ट में खौफनाक तेंदुए का हमला लेकिन जज साहब का बाल भी बांका न हुआ।

बहादुर वकील तेंदुए से लड़ते हुए शहीद हो गया, सरकार ने उसके परिवार को पाँच लाख रुपए देने का ऐलान किया।

हम आपको बताएँगे कि तेंदुआ कहाँ रहता है, क्या खाता है और कैसे नहाता है।

आखिर तेंदुए ने हमारे ऐतिहासिक शहर को ही हमले के लिए क्यों चुना?

अगर यही काम कोई इंसान करता तो उसके लिए कैसी सजा का प्रावधान है, यह बताएँगे हमारे कानून विशेषज्ञ।

तेजी से कटते वनों के लिए क्या पिछली सरकार है जिम्मेदार।

माननीय मंत्री जी ने कहा है कि यह तेंदुआ पड़ोसी देश की साजिश के तहत आया है।

थोड़ी देर में कोर्ट का माहौल शांत हो चुका था। जज साहब अपने निवास पर जा चुके थे इसलिए ज्यादातर वकील भी छुट्टी के मूड में थे। थोड़ी पूछताछ करने पर राकेश को पता चला कि वन विभाग का जानवरों का अस्पताल शहर से बाहर नदी के उस पार है। यह भी पता चला कि तेंदुए को उसी अस्पताल ले जाया गया है। राकेश ने फौरन अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चल पड़ा वन विभाग के उस अस्पताल की ओर जहाँ तेंदुए को ले जाया गया था।

उस अस्पताल के गेट पर सुरक्षा चाक चौबंद थी। लेकिन राकेश को हर रोज अस्पताल जाने की प्रैक्टिस थी। राकेश के पास हर वह चीज थी जिनकी मदद से वह किसी भी अस्पताल के भीतर आसानी से जा सकता था। उसके पास उसका बैग था जो दवाइयों के सैंपल और गिफ्ट से भरा था। उसके कपड़े लत्ते से वह आला दर्जे का बुद्धिजीवी दिखता था। और उसके पास वह अचूक हथियार था जिसे देखकर बड़े से बड़ा डॉक्टर भी अपने चैंबर में बुला लेता है। जी हाँ, उसके पास कम्पनी का दिया हुआ विजिटिंग कार्ड था जिसपर कम्पनी के लोगो के आगे उसका नाम और पदनाम लिखा हुआ था।

सबसे पहले राकेश ने बैग में से एक छोटा सा आइना और कंघी निकाली और अपने बाल संवारे। फिर एक पैर को पीछे करके दूसरे पैर की पतलून से जूते को चमकाया और ऐसा ही दूसरे पैर के लिए भी किया। उसके बाद गेट पर खड़े चौकीदार को एक कलम गिफ्ट किया और फिर अपना विजिटिंग कार्ड दिखाया। उस चमचमाती कलम को देखते ही चौकीदार के चेहरे पर चमक आ गई और उसने राकेश को आसानी से भीतर जाने की अनुमति दे दी।

अंदर थोड़ी बहुत पूछताछ करने के बाद राकेश उस अस्पताल के डॉक्टर के चैम्बर में पहुँच गया। बड़े अदब से डॉक्टर का अभिवादन करने के बाद वह उसके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया और लगा अपनी कम्पनी की दवाइयों का गुणगान करने।

डॉक्टर ने उसे टोकते हुए कहा, आपकी कम्पनी तो इंसानों के लिए दवा बनाती है। इसमें मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता हूँ। अगर आपकी कम्पनी जानवरों की दवा बनाती तो बेहतर होता। अच्छा होगा कि आप अपनी कम्पनी के वेटेरिनरी डिविजन वाले रिप्रेजेंटेटिव को भेज दें।

राकेश ने छूटते ही जवाब दिया, अरे डॉक्टर साहब उस डिविजन की सेल से मुझे कोई फायदा नहीं होगा। दवा तो दवा होती है। एक इंसान को जितनी खुराक लगती है उसकी चार गुनी खुराक दे दें तो जानवर को भी फायदा ही होगा। हें, हें, हें, हें, अब मैं कौन होता हूँ आपको पढ़ाने वाला। आपने इसी बात की पढ़ाई पर अपना जीवन न्योछावर किया है। हमारी कम्पनी की एंटिबायोटिक का नाम है मेगामाइसिन। इंसानों को एक दिन में एक इंजेक्शन देना पड़ता है। इस तेंदुए को चार लगा दीजिए। हमारा एक विटामिन का कैप्सूल भी है जिसका नाम है ताकतवीटा। इंसानों के लिए दिन में एक गोली की खुराक है। इस तेंदुए को चार दे दीजिए। बेचारा बुरी तरह घायल हो चुका है। आप चाहें तो एक दिन में दस गोली भी दे सकते हैं। हें, हें, हें, हें, आप हमारा खयाल रखिए फिर हम आपका पूरा खयाल रखेंगे।

यह कहते हुए राकेश ने अपने बैग से एक गिफ्ट पैक निकाला जिसको खोलने पर उसमें से एक खूबसूरत गुलदस्ता निकला। उसमें लगे फूल बिलकुल असली दिखते थे। उस गुलदस्ते को राकेश कुमार घायल ने इस अदा से डॉक्टर के हाथों में थमाया जैसे कोई वैलेंटाइन डे के अवसर पर अपनी गर्लफ्रेंड को थमाता है। उस गुलदस्ते का स्पर्श पाते ही लगता है डॉक्टर भी घायल हो गया और राकेश की कम्पनी की दवाइयाँ उस तेंदुए को देने के लिए हामी भर दी।

उसके बाद राकेश ने डॉक्टर की कान में फुसफुसाकर कुछ कहा जिसे सुनकर वह डॉक्टर ऐसे खीसें निपोरने लगा जैसे उसके हाथ जादुई चिराग लग चुका हो।