जंगल बुक पार्ट 3

उबाऊ काम

हिंदी अनुवाद

अजय आनंद

अपने बड़े भाई के जाने के बाद मोगली एक छायादार जगह पर लेट गया और सो गया। भैंसे उसके इर्द गिर्द चर रहीं थीं। चरवाहे का काम बड़ा ही उबाऊ काम होता है। मवेशी घास चरते हैं और आगे बढ़ते हैं, फिर लेट जाते हैं, फिर चल पड़ते हैं। कभी-कभी तो वे घंटों एक ही जगह पर ख‌ड़े रहते हैं।

ज्यादातर समय ये मवेशी कुछ नहीं बोलते और भैंसें तो शायद कभी नहीं बोलती हैं। भैंसें कतारबद्ध होकर कीचड़ भरे गड्ढ़े में चली जाती हैं और इतने गहरे चली जाती हैं कि बस उनकी थूथन और चमकती हुई आँखें ही दिखाई पड़ती हैं। वहाँ वे घंटों तक किसी निर्जान लट्ठे की तरह पड़ी रहती हैं।


Jungle Scene

तेज धूप में जब लगता है कि पत्थर भी हिल रहे हैं, तब चरवाहों को दूर से किसी चील की सीटी की आवाज सुनाई देती है। वे अलसाई आँखों से जब धूप में चील को देखने की कोशिश करते हैं तो उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता। बच्चों को पता है कि जब कोई इंसान या मवेशी मर जाता है तो ऐसी ही एक चील तेजी से नीचे आती है और उसके बाद तो चीलों की कतार लग जाती हैं। सब चीलें भूखी होती हैं इसलिए उस मृत जानवर का भोजन करना चाहती हैं।

फिर वे चरवाहे ऊँघने लगते हैं और सो जाते हैं। बीच-बीच में जागने और सोने का यह सिलसिला चलता रहता है क्योंकि चरवाही का काम ही मन को उबाने वाला है। कुछ बच्चे सूखी घास से छोटी टोकरियाँ बुनते हैं और उसमें किसी टिड्डे को पकड़कर रख देते हैं। कुछ बच्चे दो मैंटिस को पकड़कर उन्हें आपस में लड़ाते हैं। कुछ बच्चे रंगबिरंगे बीजों से माला बनाते हैं। कुछ बच्चे धूप सेंकती हुई गिरगिट को रंग बदलते देख खुश होते हैं, तो कुछ किसी साँप को मेंढ़क खाते हुए देखना पसंद करते हैं।

फिर वे बड़े लम्बे-लम्बे गाने गाते हैं जिनमें हँसी मजाक के पुट होते हैं। इन्हें लम्बे-लम्बे गाने गाने की जरूरत इसलिये पड़ती है कि शायद इनके लिये दिन कुछ ज्यादा ही लम्बा होता है। इन सबसे ऊब जाने के बाद ये बच्चे कीचड़ से किले बनाते हैं और उसके आसपास इंसानों के पुतले भी बनाते हैं। इंसानी पुतलों के हाथ में वे सरकंडे खोंस देते हैं ताकि वे सैनिकों की तरह दिखें। फिर वे अपनी काल्पनिक सेना से युद्ध भी करवाते हैं और उसमे हुई हार जीत का मजा लेते हैं। इस तरह के क्रियाकलापों के दौरान ये बच्चे अक्सर खुद को राजा या भगवान समझते हैं और सोचते हैं कि उनके सैंनिक उनकी पूजा करते हैं।

जब शाम होती है तो चरवाहे अपने मवेशियों को आवाज लगाते हैं। भैंसें अलसाई मुद्रा में ही बारी-बारी से कीचड़ से बाहर निकलती हैं और इतना शोर मचाती हैं जैसे तोप के गोले छूट रहे हों। फिर सारे मवेशी कतारबद्ध होकर गाँव की ओर चल पड़ते हैं। ऐसे में झोपड़ियों में शाम के समय जल उठे कुछेक दीये जैसे उनके लिये दिशा दिखाने का काम करते हैं।