अरेबियन नाइट्स

सिंदबाद की चौथी यात्रा

लाशों वाली गुफा

ट्रांसलेशन: अजय आनंद

अपनी तीसरी यात्रा से लौटने के कुछ ही महीनों बाद सिंदबाद जैसे घुमक्कड़ को बोरियत होने लगी और उसने फिर से लंबे सफर पर निकलने का मन बना लिया। उसने फिर से जरूरी सामान खरीदे और जहाज पर सवार होने के लिए बगदाद से बसरा पहुँच गया।


Jungle Scene

उसके सफर शुरु होने के कई दिन बीतने के बाद हवाओं का रुख खराब हो गया और जहाज के कप्तान ने बीच समंदर में ही लंगर डाल दिया। तूफान के वक्त किनारे की बजाय बीच समंदर उसे शायद अधिक सुरक्षित लगा होगा। जहाज पर सवार हर किसी को जहाज के डूबने का डर सता रहा था। एक बड़ा भयानक तूफान आया और जहाज के पालों को तार तार कर गया और जहाज के टुकड़े टुकड़े हो गए। जहाज में सवार सिंदबाद और बाकी हर कोई अपने माल असबाब के साथ डूबने लगा। पहले तो सिंदबाद ने अपने हाथ पाँव मारे लेकिन उसके बाद हताश होकर उसने अपने आप को भाग्य भरोसे छोड़ दिया।

लेकिन संयोग से उसे सहारे के लिए लकड़ी का एक बड़ा सा तख्ता मिल गया जिसपर वह सवार हो गया। उस तख्ते पर कई अन्य लोग भी सवार हो चुके थे। एक दो दिनों के बाद हवाओ और लहरों ने उन्हें एक टापू पर लाकर पटक दिया।

उस टापू पर छोटे छोटे पौधों की भरमार थी। भूख मिटाने के लिए उनके पास उन घास पत्तों को खाने के सिवा और कोई चारा न था। अगली सुबह उन्हें थोड़ी दूर पर एक मकान दिखा। जब वे लोग उस मकान के पास पहुँचे तो उसके भीतर से ढ़ेर सारे नंगे आदमी निकले, सिंदबाद और उसके साथियों को बंदी बना लिया और अपने राजा के पास ले गए।

वहाँ सिंदबाद और उसके साथियों को बिठाकर उनके सामने अजीबोगरीब भोजन परोसा गया जिसे देखते ही सिंदबाद को उबकाई आने लगी। लेकिन दबाव में आकर उसने उनमें से थोड़ा बहुत अपने हलक के नीचे उतारा। उसके साथियों ने पेट भर के खाना खाया।

खाना खाते ही उसके साथियों के दिमाग फिर चुके थे और वे पागलों की तरह खा रहे थे और पागलों वाला बर्ताव कर रहे थे। उसके बाद उन लोगों को नारियल का तेल पीने को दिया गया। वह तेल पीते ही उनकी आँख़ें उलट गईं और फिर उस घिनौने खाने को वे और भी ज्यादा घिनौने तरीके से अपने मुँह में ठूँसने लगे।

यह सब देखकर सिंदबाद को उस देश के किस्सों के बारे में याद आया। सिंदबाद ने सुना था कि उस देश में अजनबियों को घटिया खाना और नारियल का तेल खिलाते हैं ताकि लोग जल्दी से मोटे ताजे हो जाएँ और उनके दिमाग काम करना बंद कर दें। उसके बाद बारी बारी से अजनबियों को जान से मारकर उसे आग पर भूनकर राजा को परोसा जाता है। लेकिन राजा को छोड़कर वहाँ के बाकी लोग इंसानों को कच्चा ही खा जाते हैं।

थोड़ी देर बाद सिंदबाद ने देखा कि वे लोग उसके किसी एक साथी को कच्चा ही खा रहे थे तो सिंदबाद का सिर भन्नाने लगा। लेकिन जिस आदमी को काटा जा रहा था उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि उसका दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा था। फिर इस तरह रोज एक दो आदमी को ऐसे काटा जाने लगा जैसे किसी मुर्गी के दड़बे से मुर्गियों को काटा जाता है।

लेकिन सिंदबाद तो भूख और भय के मारे इतना दुबला हो चुका था कि उसके शरीर पर हड्डियाँ ही बची थीं। उसे ऐसी हालत में देखकर उन नंग धड़ंग लोगों ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया और शायद उसे भूल भी गए।

फिर सिंदबाद वहाँ से बच निकलने का उपाय सोचने लगा। इसी कोशिश में एक दिन वह एक आदमी से मिला जो वहाँ जल्लाद का काम करता था। जब जल्लाद ने देखा कि सिंदबाद का दिमाग पूरी तरह से ठीक था तो उसने सिंदबाद को वहाँ से भाग जाने का रास्ता बता दिया।

यह सुनकर सिंदबाद उसके बताए रास्ते पर चलने लगा। चलते चलते शाम हो गई और फिर अंधेरा छाने लगा। कुछ देर आराम करने के बाद उसने फिर से चलना शुरु कर दिया। इस तरह से सिंदबाद सात दिन और सात रातों तक लगातार चलता रहा। बीच बीच में भूख लगने पर जो भी घास फूस मिलती उसे खा लेता था। आठवीं सुबह को उसे दूर कुछ लोग दिखाई दिए। लेकिन उन लोगों तक पहुँचने में पूरा दिन बीत गया। हिम्मत कर के सिंदबाद उनके नजदीक गया तो पाया कि वे लोग काली मिर्च तोड़ रहे थे।

अजनबी को देखते ही उन लोगों ने उसके बारे में पूछा तो सिंदबाद ने बताया कि वह एक भटका हुआ परदेसी है और बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर वहाँ पहुँचा है। सिंदबाद की कहानी सुनकर उन लोगों को बहुत ताज्जुब हुआ क्योंकि उन नंगे लोगों के हाथ से कोई भी जिंदा नहीं बचता था।

उसके बाद उन लोगों ने सिंदबाद से कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने सिंदबाद को खाने को अच्छा खाना दिया। उसके बाद वे लोग उसे एक नाव में ले गए और फिर वे लोग अपने टापू पर गए जहाँ उनके घर थे।

वे लोग सिंदबाद को अपने राजा के पास ले गए। दुआ सलाम के बाद राजा ने उसे बैठने के लिए उचित आसन दिया और फिर उसके बारे में पूछा। सिंदबाद कहानी सुनकर राजा ने उसे अभयदान दिया और वहाँ रहने की अनुमति दे दी।

अगले दिन सिंदबाद उस शहर को देखने निकल पड़ा। वह एक संपन्न और खुशहाल शहर था जहाँ के बाजारों में रौनक थी और उन बाजारों में तरह तरह की चीजें बिक रहीं थीं। सिंदबाद ने एक अनोखी बात पर गौर किया। वहाँ रहने वाले लगभग हर किसी के पास अच्छी नस्ल का घोड़ा था लेकिन किसी भी घोड़े पर काठी यानि गद्दी नहीं होती थी।

यह देखकर सिंदबाद ने राजा से काठी के बारे में बताया जिसके बारे में राजा ने कभी नहीं सुना था। सिंदबाद ने राजा से बताया कि वह उसके लिए एक काठी बनाकर दिखा सकता है जिसपर बैठने पर ही पता चलेगा कि जब घोड़े पर काठी या गद्दी डालकर बैठो तो घुड़सवारी कितनी आरामदेह हो जाती है।

फिर सिंदबाद के मुताबिक राजा ने उसे जरूरी सामान दिलवा दिए ताकि वह एक काठी बनाकर दिखाए। साथ में एक हुनरमंद बढ़ई और एक लोहार को भी काम पर लगा दिया गया। उसके बाद बढई, लोहार और दर्जी की मदद से राजा के लिए काठी और रकाब तैयार हुई।

उसके बाद राजा के अस्तबल से एक उन्नत किस्म के घोड़े पर काठी और रकाब कस दी गई। जब राजा ने उस घोड़े की सवारी की तो वह खुशी से झूम उठा। उसके बाद सिंदबाद को एक नया रोजगार मिल गया। वहाँ के रईसों और आला अफसरों के लिए काठियाँ बनने लगीं। सिंदबाद का धंधा चल निकला और थोड़े ही दिनों में उसका नाम उस शहर के रईसों में शुमार होने लगा।

एक दिन जब सिंदबाद राजा के दरबार में बैठ हुआ था तो राजा ने कहा कि तुमने कुछ ही दिनों में हमारा दिल जीत लिया है और अब समझ में नहीं आता कि जब तुम अपने मुल्क वापस चले जाओगे तो हमारा मन कैसे लगेगा। उसके पहले मैं चाहता हूँ कि तुम मेरा एक काम कर दो और मुझे मना ना करो।

सिंदबाद के हामी भरने पर सुनकर राजा ने कहा मैं चाहता हूँ कि तुम यहाँ कि एक योग्य कन्या देखकर शादी करो। उसके बाद तुम यहीं के होकर रह जाओगे। यह सुनकर सिंदबाद ने शादी करने के लिए हामी भर दी क्योंकि वह उन लोगों के अहसानों के तले इतना दबा हुआ जो था।

उसके बाद रजा ने काजी को बुलाया और फिर सिंदबाद की शादी उँचे कुल और रईस घराने की एक सुंदर लड़की से करा दी। राजा ने सिंदबाद को रहने के लिए एक आलीशान भवन दे दिया और साथ में ढ़ेर सारे नौकर चाकर और मोटी तनख्वाह भी दे दी। इस तरह से सिंदबाद के जीवन में खुशियों का एक नया दौर शुरु हुआ।

कई बरस बीत गए। एक दिन सिंदबाद के पड़ोसी की बीबी की मौत हो गई। मैयत में सिंदबाद भी शामिल हुआ। पड़ोसी की हालत देखकर ढ़ाढ़स बँधाने के खयाल से सिंदबाद ने कहा जिसे जाना था वह तो चली गई और अब उसे संयम से काम लेते हुए आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए। सिंदबाद ने कहा कि ऊपर वाले ने चाहा तो उसे इससे भी अच्छी बीबी मिल जाएगी तो उसके घाव को जल्द भर देगी।

यह सुनकर पड़ोसी और भी जोर जोर से रोने लगा। उसने बताया कि वह अब दोबारा शादी नहीं कर सकता है और भविष्य के बारे में तो बिलकुल भी नहीं सोच सकता है क्योंकि अब उसके जीवन का बस एक ही दिन शेष है।

यह सुनकर सिंदबाद को कुछ अजीब लगा। फिर उसे पता चला कि वहाँ के रिवाज के मुताबिक मियाँ और बीबी में से किसी एक की मौत होने पर दूसरे को मरने वाले के साथ जिंदा ही दफना दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि लोग मानते हैं कि एक के बिना दूसरे को जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं होता है।

सुनकर सिंदबाद का दिमाग सन्न हो गया। वह अभी सोच ही रहा था कि वहाँ पर ढ़ेर सारे लोग आ चुके थे और पड़ोसी को दिलासा दे रहे थे। महिलाएँ उसकी बीबी की लाश को बेशकीमती पोशाकों और गहनों से सजा सँवार रही थीं। उसके बाद एक अर्थी पर लाश को रखा गया और फिर उसके पति के साथ एक लंबा जुलूस निकल पड़ा। चलते चलते वे लोग शहर के बाहर पहुँच गए और और ऐसी जगह पहुँचे जो पहाड़ से सटे और समंदर के किनारे थी।

एक जगह पहुँचकर लोगों ने एक बड़ा भारी पत्थर उठाया जिसके उठते ही जमीन में एक बड़ा सा मुँह दिखा, ठीक किसी कुएँ जैसा। उस कुएँ में उन्होंने उस औरत की लाश को फेंक दिया। उसके बाद उसके पति को रस्सी से बाँध दिया और फिर उसे भी उस कुएँ में गिरा दिया। उसके बाद रस्सी के सहारे एक बड़े से जग में शरबत और सात केक नीचे गिरा दिए गए। नीचे पहुँचने के बाद उसने अपने हाथों से रस्सी खोल दी जिसे लोगों ने ऊपर खींच लिया। उसके बाद लोगों ने उस विशाल पत्थर से उस मुँह को बंद कर दिया और वहाँ से वापस लौट गए।

यह सब देखकर सिंदबाद सोच में पड़ गया। उसे समझ में आने लगा कि उसने भारी भूल कर दी थी। वह राजा के पास गया और उससे उस अजीबोगरीब रिवाज के बारे में पूछा। राजा ने कहा कि यह तो हमारे देश में सदियों से होता आया है। हमारा मानना है एक बार शादी हो जाए फिर मियाँ बीबी का जीना और मरना साथ साथ होता है।

सिंदबाद ने पूछा कि मेरे जैसे परदेसी पर तो यह नियम लागू नहीं होना चाहिए। राजा ने कहा कि अब तुम हमारे संबंधी बन चुके हो इसलिए तुमपर भी यही नियम लागू होगा। यह सुनकर सिंदबाद को लगा कि उसकी नसें फट जाएँगी।

उस हादसे को कुछ ही दिन बीते थे कि सिंदबाद की बीबी बीमार पड़ी और फिर मर गई। सिंदबाद को ढ़ाढ़स बँधाने के लिए ढ़ेर सारे लोग इकट्ठा हुए। राजा भी आया और सिंदबाद से जीवन और मृत्यु के गूढ़ विषय पर चर्चा करने लगा। फिर कुछ महिलाएँ आईं और सिंदबाद की बीबी की लाश को नहलाया धुलाया, कीमती कपड़े पहनाए और उसके सारे गहने पहनाए और फिर अर्थी तैयार की गई। फिर उसकी शवयात्रा निकली और लोग उसी स्थान पर पहुँचे और वहाँ पर पड़े विशाल पत्थर को हटाया। सब लोग सिंदबाद से गले मिल कर उसे अंतिम बार विदा कर रहे थे। सिंदबाद चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था कि वह एक परदेसी है इसलिए उसपर वह नियम लागू नहीं होना चाहिए। लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी और फिर उसे भी उस गहरे गड्ढ़े में फेंक दिया गया। उस गड्ढ़े का मुँह बंद करके लोग वहाँ से चले गए।

नीचे सिंदबाद को अनेक लाशें दिख रही थीं। अधिकतर लाशों में से सड़ने की बदबू आ रही जिससे सिंदबाद को उबकाई हो रही थी। भीतर इतना अंधेरा था कि रात और दिन का फर्क नहीं पता चलता था। सिंदबाद को जो सात केक दिए गए थे उनमें से वह बचा बचाकर खाता था। वह केक का छोटा सा टुकड़ा लेता और तभी खाता जब भूख बर्दाश्त के बाहर हो जाती थी।

वह उस अंधेरी गुफा की दीवारों के सहारे इधर उधर चलता रहता। ऐसा करने के दौरान उसकी समझ में आ गया था कि गुफा की जमीन तो लाशों से भरी पड़ी थी लेकिन दीवारों के आस पास की जगह खाली थी। इस तरह से उसने दीवार से सटे एक ऐसी जगह ढ़ूँढ़ ली थी जहाँ वह कुछ देर सुकून के साथ सो सकता था।

धीरे धीरे सिंदबाद का राशन खत्म होने के कगार पर था और अब उसने अपनी खुराक और भी कम कर दी थी। सिंदबाद हमेशा सोच में पड़ा रहता था कि उसका राशन पानी समाप्त होने के बाद उसकी क्या दुर्दशा होगी। एक दिन वह यही सबकुछ सोच रहा था कि ऊपर किसी ने उस विशाल पत्थर को हटाया और नीच तक सूरज की रोशनी की चमक आई। अभी सिंदबाद कुछ समझने की कोशिश ही कर रहा था कि ऊपर से एक आदमी की लाश गिरी और फिर उसके बाद उसकी रोती विलापती हुई पत्नी नीचे आई। उसके साथ ढ़ेर सारा खाना और पानी भी था।

उसके बाद ऊपर का विशाल पत्थर अपनी जगह लग गया और नीचे घुप्प अंधेरा छा गया। सिंदबाद ने किसी इंसान की सबसे लंबी हड्डी हाथ में ली और उस औरत के सिर पर जोर से मार दिया। जैसे ही वह अचेत होकर गिरी, सिंदबाद ने उसके सिर पर कई बार प्रहार किया और इस तरह उसे जान से मार दिया।

उसके बाद सिंदबाद ने उसके पास पड़े खाने की चीजों और पानी को वहाँ से उठा लिया। साथ में सिंदबद ने उसके गहने जेवर और अन्य कीमती सामान भी ले लिए। उसके बाद सिंदबाद अपनी उस सुरक्षित जगह पर चला गया जो पिछले कई दिनों से उसका ठिकाना बन चुका था।

इस तरह को सिंदबाद उस गुफा में एक लंबे अरसे तक रहना पड़ा। जब भी किसी को दफनाया जाता तो सिंदबाद उसके साथ आने वाले जीवित इंसान की हत्या कर देता और वहाँ से सारी कीमती चीजें और खाने पीने का सामान हथिया लेता था।

एक दिन सिंदबाद जब सोया हुआ था तो उसे कोई शोरगुल सुनाई दिया। अपने हाथ में एक लंबी हड्डी लेकर सिंदबाद उस ओर बढ़ा जिधर से आवाज आ रही थी। लेकिन उस शोर मचाने वाली चीज को शायद सिंदबाद के पहुँचने का अहसास हो गया और वह वहाँ से भाग गई। सिंदबाद ने भागकर देखा तो पाया कि वह कोई जंगली जानवर था। पास पहुँचकर देखने पर सिंदबाद को पता चल गया कि उस रास्ते जंगली जानवर आते थे और नीचे पड़ी लाशों को नोचकर खाते थे।

यह देखकर सिंदबाद को बहुत तसल्ली मिली। उसे अब उम्मीद की किरण दिख रही थी। थोड़ी मशक्कत करने पर वह उस सुराख से बाहर निकल गया तो बाहर उसे समंदर का किनारा दिखाई दिया। उस तरफ से शहर नहीं दिख रहा था क्योंकि उस किनारे और शहर के बीच वह पहाड़ खड़ा था। शायद इसलिए उधर कोई भी आता जाता नहीं था।

सिंदबाद ने आसमान की ओर देखा और ऊपरवाले का शुक्रिया अदा किया। आखिर इतने दिनों बाद उसे खुली हवा में साँस लेने का मौका मिल रहा था। उसके बाद सिंदबाद वापस अपनी जगह पर लौट गया। कुछ लाशों के कपड़ों में से छाँटकर सिंदबाद ने कपड़े पहन लिए और जितना हो सकता था गहने जेवर और कीमती सामान इकट्ठा कर लिया।

अब रोज सिंदबाद दिन निकलते ही उस सुराख के रास्ते बाहर निकल जाता था और किसी जहाज के गुजरने का इंतजार करता था। साथ में वह अपने साथ गहने जेवर, हीरे जवाहरात, आदि भी लेकर चलता था। रात होने पर वह वापस अपनी गुफा में लौट जाता था।

ऐसे ही एक लंबा अरसा बीत गया। एक दिन सिंदबाद की किस्मत जाग गई और उसे एक जहाज जाता हुआ दिखाई दिया। सिंदबाद ने एक लकड़ी में सफेद कपड़ा बाँधा और इशारे करने लगा। उसका इशारा देखते ही वह जहाज वहाँ रुका और उसमें से एक नाव पर कुछ लोग सिंदबाद को निकालने के लिए आ गए।

नाव में बैठते ही सिंदबाद ने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई और बताया कि वह अपने जहाज से बिछड़ चुका था। उन लोगों को सिंदबाद की कहानी सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। सिंदबाद ने उन्हें उस शहर या फिर लाशों वाली गुफा के बारे में कुछ नहीं बताया। सिंदबाद को डर था कि अगर जहाज पर उस शहर का कोई हुआ तो फिर लेने के देने पड़ जाएँगे।

सिंदबाद जब जहाज पर पहुँचा तो उसके कप्तान के सामने ढ़ेर सारे रत्न और आभूषण रखते हुए कहा कि साहेब आपने मेरी जान बचाई है इसलिए मेरी तरफ से यह छोटा सा नजराना कबूल करें। लेकिन कप्तान ने कुछ भी लेने से मना कर दिया और बताया कि जब भी वे किसी भटके हुए राहगीर की जान बचाते हैं तो उसके बदले में कुछ नहीं लेते हैं। वे उस आदमी भरपेट खाना खिलाते हैं और जरूरत पड़ने पर उसे तन ढ़कने के लिए कपड़े भी देते हैं। बंदरगाह पहुँचने पर वे उस आदमी को कुछ धन भी देते हैं ताकि वह आगे अपने घर तक का सफर कर सके।

वहाँ से कुछ दिनों के बाद वे लोग बसरा वापस पहुँच गए। उसके बाद सिंदबाद अपने घर बगदाद लौट गया। उसके लौटने की खुशी में उसके घर में भारी जश्न मनाया गया।