अरेबियन नाइट्स

सिंदबाद की दूसरी यात्रा

सिंदबाद और विशाल चिड़िया

ट्रांसलेशन: अजय आनंद

अपनी पहली यात्रा के दौरान आने वाली मुसीबतों से सिंदबाद इतना डर चुका था कि भविष्य में कभी भी बाहर न जाने की कसम खाई थी। लेकिन कुछ ही समय बीते थे कि उसे लगा कि जहाज उसे पुकार रहे हैं और समंदर उसे न्योता दे रहा है। फिर क्या था फिर से सिंदबाद ने जरूरी सामान खरीदे और अपना बोरिया बिस्तर पैक कर के चलने को तैयार हो गया।


Jungle Scene

इस बार उसे एक सुंदर और नया जहाज मिला जिसे देखकर वह और भी रोमांचित हो गया। सिंदबाद ने अन्य व्यापारियों की तरह जहाज पर अपना माल लदवाया और फिर वह जहाज अपनी यात्रा पर चल पड़ा।

उसके बाद वह जहाज एक शहर से दूसरे शहर, एक टापू से दूसरे टापू चलता गया और हर जगह सिंदबाद और बाकी व्यापारी खरीद बिक्री करते गए। ऐसे ही चलते चलते वे एक खूबसूरत टापू पर पहुँचे। वह टापू पेड़ों से लदा हुआ था जिनपर पके रसीले फल लदे हुए थे। चारों तरफ फूलों की भीनी भीनी खुशबू फैल रही थी। चिड़िया गा रही थी और नदी की धारा से कलकल की आवाज आ रही थी। लेकिन उस टापू पर एक भी इंसान नजर नहीं आ रहा था और आबादी होने का कोई सुराग नहीं दिख रहा था।

सिंदबाद एक झरने के किनारे बैठ गया और अपने पास रखे खाने की चीजों को निकालकर खाने लगा। जब सिंदबाद का पेट भर गया तो ठंडी हवा के झोंको के कारण उसे जल्दी ही नींद आ गई। काफी देर बाद सिंदबाद की नींद खुली तो वहाँ पर किसी भी आदमी का नामो निशान नहीं था। जहाज अपनी सवारियों के साथ जा चुका था।

सिंदबाद ने जब अपने आपको बिलकुल अकेला पाया तो भय और चिंता के मारे लगा कि उसकी नसें फट जाएँगी। सिंदबाद बिलकुल खाली हाथ था। उसके पास खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं था। इस बार उसे पक्का यकीन हो रहा था कि उस निर्जन टापू पर भटकते भटकते उसकी जान निकल जाएगी।

ळेकिन अब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से तो कुछ होने वाला नहीं था। इसलिए सिंदबाद ने हिम्मत जुटाई और एक पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद उसने चारों तरफ मुआयना किया लेकिन उसे नीले आकाश, पेड़, चिड़िया, टापू और रेत मिट्टी के सिवा कुछ नहीं दिखा। काफी देर तक बहुत गौर से देखने के बाद उसे दूर क्षितिज पर सफेद गुम्बद जैसा कुछ दिखाई दिया। दूर से भी वह गुम्बदनुमा चीज बहुत बड़े आकार की लग रही थी।

सिंदबाद हिम्मत करके उस चीज की तरफ गया। पास से तो वह और भी विशाल लग रही थी। सिंदबाद ने उसके ऊपर चढ़ने की कोशिश की लेकिन उसकी चिकनी सतह के कारण चढ़ने में सफल नहीं हुआ। उसके बाद सिंदबाद ने जमीन पर एक जगह निशान बनाया और उसके चारों तरफ घूमकर नापा तो पाया कि उसका घेरा पूरे पचास कदमों के बराबर था। उसके चारों तरफ घूमने के दौरान उसमें कोई भी दरवाजा नहीं दिखा जिससे होकर उसके भीतर जाया जा सके।

अभी दोपहर का ही वक्त था कि अचानक से सूरज गायब हो गया और सिंदबाद के आसपास अंधेरा छा गया। सिंदबाद को ताज्जुब हुआ कि गरमी के मौसम में अचानक काले घने बादल कहाँ से आ गए। जब सिंदबाद ने देखने के लिए अपना सिर ऊपर किया और गौर से देखा तो उसकी समझ में आया कि वह एक विशाल चिड़िया थी, जिसका बड़ा भारी शरीर था, और जो अपने विशाल पंखों के सहारे हवा में उड़ रही थी। उसके विशाल पंखों ने सूरज को पूरी तरह से छुपा दिया था।

सिंदबाद को डर भी हो रहा था और ताज्जुब भी। उसे यात्रियों और व्यापारियों से सुनी वह कहानी याद आई जिसमें वे कुछ टापू पर किसी विशाल चिड़िया के बारे में बताते थे। उस चिड़िया का नाम रुख था और वह अपने चूजों के लिए हाथी के शावक मारकर लाती थी। अब सिंदबाद को यकीन होने लगा कि जिसे वह गुम्बद समझ रहा था वह जरूर उस चिड़िया का अंडा होगा।

सिंदबाद अभी कुदरत की बनाई उस अनूठी चीज के बारे में सोच ही रहा था कि उस चिड़िया ने अपने पंख फैलाए और उस गुम्बद के ऊपर बैठ गई, जैसे अंडे को सेने जा रही हो।

जब चिड़िया को नींद आ गई तो सिंदबाद ने अपनी पगड़ी उतारी और उसे उमेठ कर रस्सी जैसा बना दिया। रस्सी के एक सिरे को सिंदबाद ने अपनी कमर से कसकर बाँध दिया और दूसरे सिरे को उस चिड़िया के पंजे से बाँध दिया। उसके बाद वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि वह चिड़िया उसे उड़ाकर किसी सुरक्षित स्थान पर छोड़ दे।

रात भर वह चिड़िया सोती रही लेकिन सिंदबाद को भला नींद कैसे आती। जब सुबह का सूरज निकला तो चिड़िया ने अपने पंख फड़फ‌ड़ाए और अपने गले से एक कर्कश आवाज निकाली जिससे सिंदबाद के कान फटने लगे। उसके बाद चिड़िया आसमान में उड़ने लगी और उसके साथ सिंदबाद भी हवा की सैर करने लगा। कुछ ही देर में वह चिड़िया बादलों से भी ऊँचा उड़ रही थी। काफी देर उड़ने के बाद चिड़िया धीरे धीरे नीचे आई और जमीन पर उतर गई। सिंदबाद ने पलक झपकते ही अपने बंधन खोले और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।

उसके बाद उस चिड़िया ने जमीन पर से कोई चीज उठाई और फिर आसमान में उड़ने लगी। गौर से देखने पर पता चला कि उसकी चोंच में एक विशालकाय साँप था। शायद अपने चूजे के लिए नाश्ता ले जा रही थी।

थोड़ी देर चलने के बाद सिंदबाद एक टीले पर पहुँचा जिसके नीचे एक बड़ी और गहरी खाई नजर आ रही थी और उसकी बगल में एक ऊँचा पर्वत दिख रहा था। उस पर्वत और उस गहरी खाई को देखकर सिंदबाद और भी निराश हो गया। उसे लगा कि यह तो आसमान से गिरे और खजूर में अटके वाली बात हो गई।

उसके बाद सिंदबाद ने हिम्मत जुटाई और उस घाटी में उतर गया। उस घाटी में उसे चारों ओर हीरे नजर आए। उन हीरों के साथ उस घाटी में हर तरफ विशालकाय साँप दिखाई दे रहे थे। हर साँप किसी ताड़ के तने की तरह मोटा था। उनका आकार देखकर लगता था कि उनके सामने यदि हाथी भी आ जाए तो उनका निवाला बन जाए।

वे साँप केवल रात को बाहर निकलते थे और दिन के वक्त छुपकर रहते थे। सिंदबाद ने कहीं सुना था कि दिन के वक्त उन्हें रुख चिड़िया का डर रहता है जो उन विशालकाय साँपों को किसी खिलौने की तरह उठा लेती हैं और फिर जमीन पर पटक कर उनका कचूमर निकाल देती है।

थोड़ी ही देर में शाम हो चुकी थी और सिंदबद उन साँपों से बचने के लिए किसी सुरक्षित जगह की तलाश कर रहा था। थोड़ी देर में उसे एक गुफा नजर आई जिसका मुँह बहुत सँकरा था। सिंदबाद जल्दी से उस गुफा के अंदर चला गया और पास ही पड़े एक बड़े से पत्थर से उसका मुँह बंद कर दिया। अब सिंदबाद सोच रहा था कि कम से कम एक रात के लिए ही सही उसकी जान तो बच जाएगी। जब सबेरा होगा तो देखेंगे कि मेरी किस्मत में क्या लिखा है।

उसके बाद जब सिंदबाद ने उस गुफा का मुआयना किया तो उसे काटो तो खून नहीं। गुफा की दूसरी छोर पर एक विशाल साँप अपने अंडों के ऊपर सोया हुआ था। सिंदबाद का तो जैसे खून जम गया। वह पूरी रात एक कोने में सिकुड़ा और सहमा हुआ बैठा रहा और भगवान भगवान करता रहा। सुबह जब वह उस गुफा से बाहर निकला तो नींद की कमी, भूख, प्यास और डर से उसका सिर भन्ना रहा था।

उसके बाद सिंदबाद उस घाटी में इधर उधर घूमने लगा। तभी ऊपर से एक ताजा मारा हुआ जानवर उसके सामने धम्म से गिरा। लगता था किसी हुनरमंद कसाई ने उसे मारा था। लेकिन वहाँ पर तो सिंदबाद के अलावा और कोई इंसान नहीं दिख रहा था।

तभी सिंदबाद को वह बात याद आई जो उसने किसी व्यापारी से सुनी थी। कुछ हिम्मत वाले व्यापारियों ने वहाँ से हीरे निकालने के लिए एक जुगाड़ इजाद किया था। वे एक भेड़ लेते हैं और उसे जिबह कर देते हैं। फिर उसकी चमड़ी निकालकर उस जानवर को घाटी में फेंक देते हैं। उस ताजा माँस पर हीरे चिपक जाते हैं। जब कोई चील या गिद्ध उस जानवर को खाने के लिए वहाँ से उठाता है और फिर उसे लेकर ऊपर पहाड़ पर जाता है तो लोग उस चिड़िया को डराकर भगा देते हैं। उसके बाद वे व्यापारी उस जानवर के माँस से चिपके हीरों को निकाल लेते हैं। उसके बाद माँस को चील और गिद्धों की दावत के लिए छोड़ दिया जाता है।

सिदबाद ने ढ़ेर सारे हीरे इकट्ठा किए और उन्हें अपनी जेबों और अपनी गठरी में ठूँस लिया। उसी दौरान एक और ताजा काटा हुआ जानवर नीचे गिरा। सिंदबाद ने उस जानवर को अपने शरीर से कसकर पकड़ लिया और फिर पीठ के बल लेट गया। सिंदबाद चित्त लेटा था और उसकी पेट पर वह मरा हुआ जानवर। थोड़ी ही देर में एक विशालकाय गिद्ध आया, उस जानवर को अपने पंजों से पकड़ा और ऊपर उड़ने लगा। उसके साथ सिंदबाद भी हवा में उड़ रहा था।

थोड़ी ही देर में वह गिद्ध पहाड़ पर पहुँच गया और फिर बैठकर उस जानवर से माँस नोचने लगा। तभी आस पास से कई लोगों के चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। कुछ लोग लकड़ी से बरतन पीट पीट कर आवाजें भी निकाल रहे थे। गिद्ध उस शोरगुल से डर कर भाग गया।

सिंदबाद ने मौका देखकर उस जानवर से अपने आप को अलग किया। उसके कपड़े खून से सने हुए थे। जब बाकी लोग वहाँ पहुँचे और सिंदबाद की अजीबो गरीब हालत देखी तो वे डर गए। उनमें से कुछ ने उस जानवर को अलट पलट कर देखा तो उसमें एक भी हीरा नहीं मिला। वे हताशा से चिल्लाने लगा।

जब सिंदबाद उसकी तरफ बढ़ा तो उसने पूछा कि भाई तुम कौन हो और ऐसी हालत में कहाँ से आए हो। सिंदबाद ने उसे बताया कि डरने की जरूरत नहीं है और वह भी एक इंसान ही है। सिंदबाद ने उन्हें अपने बारे में बताया और यह भी बताय कि उसके पार ढ़ेर सारे बेशकीमती हीते हैं।

तब तक वहाँ मौजूद बाकी लोग भी पास आ चुके थे। उन सबने उसे जिंदा बचने पर मुबारकवाद दिया। फिर वे लोग उसे अपने साथ अपने तंबू में ले गए। वहाँ सिंदबाद ने उन्हें पूरी आपबीती सुनाई। उसके बाद उस जानवर के मालिक को ढ़ेर सारे हीरे दे दिए। फिर रात में सबने दावत उड़ाई और एक दूसरे से अपना दुख दर्द बाँटा।

अगले दिन वे लोग वहाँ से आगे चल पड़े। उस घाटी से इतने बेशकीमती हीरे मिले थे उनके बदले में सिंदबाद को उन व्यापारियों से एक से एक नायाब और कीमती सामान मिल गए। फिर सिंदबाद उनके साथ कई देशों में घूमा और एक से एक आलीशान नजारों को देखा। इस तरह से खरीद बिक्री करते हुए एक दिन सिदबाद बसरा पहुँच गया। वहाँ कुछ दिनों तक रहने के बाद सिंदबाद अपने शहर बगदाद लौट गया।

बगदाद पहुँचने के बाद सिंदबाद ने अपने परिवार के साथ खुशियाँ मनाई। उसने फिर से कसम खाई कि अब कभी भी बगदाद से बाहर कदम नहीं रखेगा।