क्लास 5 हिंदी
छोटी सी हमारी नदी टेढ़ी मेढ़ी धार
गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार।
पार जाते ढ़ोर डंगर, बैलगाड़ी चालू
ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढ़ालू।
पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम
काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम।
यह कविता रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखी है।
कवि ने एक छोटी से नदी के बारे में बताया है। नदी की धार टेढ़ी मेढ़ी है। इस तरह की छोटी नदियाँ अक्सर हिमालय की तराई में पाई जाती हैं। नदी की गहराई इतनी कम है कि उसे पार करने में केवल घुटने तक ही पैर गीले होते हैं। छोटी ठेला गाड़ी और बैलगाड़ी इस नदी को आसानी से पार कर लेती हैं। नदी के पेट में साफ सुथरी रेत है और कीचड़ का नामो निशान नहीं है। नदी के एक पार सनई के सफेद फूल हैं जो खिली धूप की तरह दिखते हैं।
दिन भर किचपिच किचपिच करती मैना डार डार
रातों को हुआँ हुआँ कर उठते सियार।
अमराई दूजे किनारे और ताड़ वन
छाँहों छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन।
नदी के आस पास पूरे दिन इस डाल से उस डाल तक मैना शोर मचाती रहती हैं। रात में सियार हुआँ हुआँ करते हैं। नदी के दूसरे किनारे पर आम के बागान और ताड़ के जंगल हैं। अमराई की छाँव में ब्राह्मणों का एक सघन मोहल्ला है।
कच्चे बच्चे धार कछारों पर उछल नहा लें
गमछों गमछों पानी भर भर अंग अंग पर ढ़ालें।
कभी कभी वे साँझ सकारे निबटा कर नहाना
छोटी छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना।
बहुएँ लोटे थाल माँजती रगड़ रगड़ कर रेती
कपड़े धोतीं, घर के कामों के लिए चल देतीं।
नदी की उथली धार में छोटे छोटे बच्चे उछल उछल कर नहा रहे हैं। वे अपने गमछे में पानी भर भर कर अपने ऊपर डाल रहे हैं। कभी कभी ये बच्चे सुबह और शाम को नहाने से निबटने के बाद गमछे से छान कर छोटी मछलियाँ भी पकड़ते हैं। औरतें नदी के किनारे पर रेत से रगड़ रगड़ कर बरतन माँजती हैं। उसके बाद कपड़े धोने के बाद वे बाकी काम करने के लिए अपने अपने घरों को चली जाती हैं।
जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती
मतवाली सी छूटी चलती तेज धार दन्नाती।
वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल
गँदले जल में घिरनी भँवरी भँवराती है चंचल।
दोनों पारों के वन वन में मच जाता है रोला
वर्षा के उत्सव में सारा जग उठता है टोला।
आषाढ़ के महीने में नदी के तेवर बदल जाते हैं। नदी में पानी इतना भर जाता है कि यह अपने किनारों पर उतराने लगती है। उस समय नदी की तेज धार दनादन ऐसे चलती है जैसे कोई नशे में चल रहा हो। पानी की धारा का वेग इतना तेज होता है कि उससे चारों ओर कोलाहल मच जाता है। कीचड़ से भरे मटमैले पानी में भँवर बनने लगते हैं जो घिरनी की तरह नाचते रहते हैं। नदी के दोनों किनारों के जंगलों में खूब शोर होता रहता है। इस तरह वर्षा के उत्सव में पूरा मोहल्ला जाग जाता है।
प्रश्न 1: तुम्हारी देखी हुई नदी भी ऐसी ही है या कुछ अलग है? अपनी परिचित नदी के बारे में छूटी हुई जगहों पर लिखो
(a) .......... सी हमारी नदी ........ ............ धार
उत्तर: बड़ी सी हमारी नदी तेज तेज धार
(b) गर्मियों में ........................................... जाते पार
उत्तर: गर्मियों में भी इतना पानी कि कोई न जाए पार
प्रश्न 2: कविता में दी गई इन बातों के आधार पर अपनी परिचित नदी के बारे में बताओ
धार पाट बालू कीचड़ किनारे बरसात में नदी
उत्तर: मेरी नदी की धार तेज है। इसके पाट खड़े हैं। नदी में बालू और कीचड़ दोनों है। किनारों पर बरगद के कई विशाल पेड़ है। बरसात में नदी का पानी बहुत बढ़ जाता है।
प्रश्न 3: तुम्हारी परिचित नदी के किनारे क्या क्या होता है?
उत्तर: मेरी नदी के किनारे बरगद के कई विशाल पेड़ हैं। इन पेड़ों के नीचे अक्सर लोग गप्प शप्प करते हैं। त्योहारों के समय किनारे पर मेला लगता है।
प्रश्न 4: तुम जहाँ रहते हो, उसके आस पास कौन कौन सी नदियाँ हैं? वे कहाँ से निकलती हैं और कहाँ तक जाती हैं? पता करो।
उत्तर: मेरा शहर गंगा नदी के तट पर बसा है। गंगा नदी गंगोत्री से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में समुद्र में मिल जाती है।
प्रश्न 1: नदी की टेढ़ी मेढ़ी धार?
उत्तर: किसी साँप की तरह
प्रश्न 2: किचपिच किचपिच करती मैना?
उत्तर: जैसे बच्चे शोर मचा रहे हों
प्रश्न 3: उछल उछल के नदी में नहाते कच्चे बच्चे?
उत्तर: जैसे मेढ़क छलांग मार रहे हों
प्रश्न 1: इस कविता के पद में कौन कौन से शब्द तुकांत हैं? उन्हें छाँटो।
उत्तर: जो शब्द किसी लाइन के अंत में तुकबंदी के लिए इस्तेमाल होता है उसे तुकांत शब्द कहते हैं। तुम आसानी से ऐसे कई शब्द छाँट सकते हो।
प्रश्न 2: किस शब्द से पता चलता है कि नदी के किनारे जानवर भी जाते थे?
उत्तर: सियार की हुआँ हुआँ वाली पंक्ति से
प्रश्न 3: इस नदी के तट की क्या खासियत थी?
उत्तर: ढ़ाल वाली हैप्रश्न 4: अमराई दूजे किनारे ................ चल देतीं।
कविता की ये पंक्तियाँ नदी के किनारे का जीता जागता वर्णन करती हैं। तुम भी निम्नलिखित में से किसी एक का वर्णन अपने शब्दों में करो
(a) हफ्ते में एक बार लगने वाला हाट
उत्तर: मेरे मोहल्ले में शनि बाजार लगता है। यह बाजार एक खाली मैदान में लगता है। बाजार में मुख्य रूप से फल और सब्जी बेचने वाले अपनी दुकानें लगाते हैं। इसके अलावा खिलौने वाले, कपड़े वाले, बरतन वाले भी दुकान सजाते हैं। एक दो ठेले पर गरमागरम जलेबी भी मिल जाती है।
अंधेरा होने पर यह बाजार रंगबिरंगी बत्तियों से गुलजार हो उठता है। मोहल्ले के अधिकतर लोग सब्जियाँ खरीदने शनि बाजार जाना पसंद करते हैं क्योंकि यहाँ खेतों से ताजा तोड़ कर लाई सब्जियाँ मिल जाती हैं।
(b) तुम्हारे शहर या गाँव की सबसे ज्यादा चहल पहल वाली जगह
(c) तुम्हारे घर की खिड़की या दरवाजे से दिखाई देने वाला बाहर का दृश्य
(d) ऐसी जगह का दृश्य जहाँ कोई बड़ी इमारत बन रही हो।
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