10 नागरिक शास्त्र


लोकतंत्र और विविधता

समाज में विविधता

जब किसी समाज में विभिन्न आर्थिक तबके, धार्मिक समुदायों, भाषाई समूहों, विभिन्न संस्कृतियों और विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं तो उस समाज में विविधता आती है। भारत उन गिने चुने देशों में है जहाँ दुनिया के लगभग सभी मुख्य धर्मों के अनुयायी रहते हैं। इस देश में हजारों भाषाएँ बोली जाती हैं। इस देश में विभिन्न प्रकार के खान-पान, पोशाकें और संस्कृतियाँ देखने को मिलती हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि भारत देश विविधताओं से परिपूर्ण है।

सामाजिक विभाजन और राजनीति: महान वैज्ञानिक डार्विन ने क्रमिक विकास के सिद्धांत को प्रतिपादित किया था। डार्विन के क्रमिक विकास के सिद्धांत के अनुसार जो जीव सबसे फिट होता है वही जिंदा रह पाता है। मानव जीवन पर भी यही बात लागू होती है। किसी भी मनुष्य को सही तरीके से जीवन यापन करने के लिए आर्थिक तरक्की करनी पड़ती है। आर्थिक तरक्की करने से किसी व्यक्ति को समाज में ऊँचा स्थान मिल जाता है। यदि आप इतिहास को देखेंगे तो पता चलेगा आर्थिक रूप से सम्पन्न समूह ने हमेशा ही आर्थिक रूप से कमजोर समूह पर शासन किया है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता था कि संसाधन और शक्ति के स्रोतों पर किसी खास वर्ग का एकाधिकार कायम हो जाता था।

सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम तीन बातों पर निर्भर करता है, जो नीचे दिये गये हैं:

  • सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम इससे तय होता है कि लोग अपनी सामाजिक पहचान को किस रूप में लेते हैं। जब किसी विशेष वर्ग के लोग अपने को विशिष्ट मानने लगते हैं तो वे सामाजिक विविधता को पचा नहीं पाते हैं।
  • सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम इस बात से तय होता है कि किसी समुदाय की मांगों को राजनेता किस तरह से पेश करते हैं।
  • यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी समुदाय की मांग पर सरकार कैसी प्रतिक्रिया करती है। जब किसी समुदाय की मांग को सरकार द्वारा उचित तरीके से मान लिया जाता है तो उस समुदाय की राजनीति प्रबल हो जाती है।

प्राचीन काल में भारतीय समाज को कार्य के आधार पर चार समूहों में बाँटा गया था। समय बीतने के साथ जाति व्यवस्था ने इन चार समूहों का स्थान ले लिया। जाति व्यवस्था के अनुसार किसी व्यक्ति का कर्म या पेशा इस बात पर आधारित होता है कि उसका जन्म किस जाति में हुआ है। कुछ काम करने का अधिकार ऊँची जाति में जन्मे लोगों को ही मिलता है, जबकि कुछ काम को केवल नीची जाति के लोगों के लायक समझा जाता है।

भारत की आजादी के कुछ वर्षों पहले तक सभी आर्थिक संसाधनों का नियंत्रण उँची जाति के लोगों के हाथों में था। ऊँची जाति के लोगों ने नीची जाति के लोगों को दबाकर रखा था। इसलिए नीची जाति के लोग सामाजिक व्यवस्था में ऊपर नहीं उठ पाते थे।

अंग्रेजी हुकूमत द्वारा भारत में आधुनिक शिक्षा पद्धति की शुरुआत की गई थी। आजादी के बाद बनी सरकारों ने भी शिक्षा को बढ़ावा दिया। इससे पिछड़े वर्ग के लोगों ने भी आधुनिक शिक्षा का लाभ उठाया। मीडिया ने भी समाज में जागरूकता फैलाने में अच्छा योगदान दिया।

समाज के पिछ्ड़े वर्ग के लोगों में जागरूकता फैलने के दूरगामी परिणाम हुए। आज आपको हर क्षेत्र में नीची जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व दिखाई देगा। आज ऊँचे पदों पर नीची जाति के लोग मिल जायेंगे। आज सरकारी तंत्र में समाज के लगभग हर वर्ग का प्रतिनिधित्व दिखाई पड़ता है। यह इस बात की पुष्टि करता है कि समाज के हर वर्ग को सत्ता में साझेदारी मिलने लगी है। हम कह सकते हैं कि आज भारत एक मजबूत लोकतंत्र बनने की दिशा में अग्रसर है।

हाशिये पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिये सरकार के प्रयास:

  • आजादी के बाद संविधान में दो ऐसे अहम प्रावधान किये गये जो भारत को सही दिशा में ले जा सकें।
  • वयस्क मताधिकार: देश के हर वयस्क नागरिक को मताधिकार दिया गया। उस समय कई जानकारों ने इस बात की हँसी उड़ाई थी। उन लोगों को लगता था कि अशिक्षित लोगों में इतना विवेक नहीं हो सकता कि वे अपने मताधिकार का सही उपयोग कर सकें। लेकिन गांधीजी मानते थे कि अगर किसी आदमी में इतनी समझ हो सकती है कि वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर ले तो फिर उस आदमी में सरकार चुनने की समझ भी अवश्य होगी।
  • अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिये उन्हें आरक्षण दिया गया। आज दलित का बेटा भी आइएएस या आइपीएस बन सकता है जो कि नौकरियों में मिले आरक्षण के कारण संभव हो पाया है।

ऊपर दिये गये दो प्रावधानों का सही महत्व समझने के लिए हमें विश्व के अन्य देशों के उदाहरणों को देखना होगा। आपने इतिहास में पढ़ा होगा कि यूरोप के देशों में महिलाओं को मताधिकार मिलने में कई सौ वर्ष लग गये थे। अमेरिका जैसे विकसित देश में आज तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन पाई है। लोकतंत्र के इतने लंबे इतिहास के बावजूद बारक ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बन पाये।

लेकिन भारत में स्थिति अलग है। हमारे देश में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर महिलाएँ आसीन हो चुकी हैं। भारत के राष्ट्रपति के पद पर तो सिख, मुसलमान और दलित भी चुने जा चुके हैं। सिख समुदाय अल्पसंख्यक है लेकिन हमारे यहाँ एक सिख भी प्रधानमंत्री बन चुके हैं।