अरेबियन नाइट्स

सिंदबाद की तीसरी यात्रा

वानरों का टापू

ट्रांसलेशन: अजय आनंद

किसी घुमक्कड़ का मन घर में कितने दिन लग सकता है। इसलिए सिंदबाद ने एक बार फिर से दूर देशों की यात्रा करने का मन बना लिया। फिर उसने व्यापार करने के लिए जरूरी सामान खरीदे और बगदाद से बसरा पहुँच गया और एक जहाज पर सवार हो गया


Jungle Scene

जहाज एक शहर से दूसरे शहर, एक टापू से दूसरे टापू बढ़ता जा रहा था और व्यापारी लोग हर जगह सामान की खरीद बिक्री कर रहे थे। ऐसे ही किसी दिन उनका जहाज बीच समंदर में लहरों के थपेड़ों के बीच से आगे बढ़ रहा था कि उस जहाज के कप्तान ने चारों ओर मुआयना किया और फिर चिल्लाने लगा, “हमारी किस्मत खराब होने वाली है क्योंकि हमारा जहाज वानरों के पर्वत की ओर जा रहा है। आज तक इस जगह से कोई जिंदा वापस नहीं लौटा है। अब हमलोगों को ऊपरवाला भी नहीं बचा सकता है”।

इसके पहले कि कप्तान की बात पूरी होती, चारों तरफ से वानर आए और उनके जहाज को घेर लिया। उनकी संख्या इतनी बड़ी थी जैसे टिड्डियों की सेना ने हमला बोल दिया हो। अब वानरों के हाथ लुटने से उन्हें कोई नहीं बचा सकता था।

बहुत सारे वानर रस्सियों पर चढ़ गए और उन मोटी रस्सियों को आसानी से अपने दाँतों से काट दिया। रस्सियाँ कट जाने के बाद सिंदबाद का जहाज किसी कटी पतंग की तरह हवा के साथ झटके खाता हुआ उस पहाड़ के पास किनारे से जा लगा। फिर उन वानरों ने हर किसी को जहाज से खदेड़ दिया और माल समेत जहाज को लेकर उन लोगों की नजरों से ओझल हो गए।

अपनी भूख मिटाने के लिए हर कोई उस टापू पर मिलने वाले फलों को खाने लगे। तभी किसी की नजर उस टापू पर एक मकान पर पड़ी जिसमें आबादी होने के निशान दिख रहे थे। जब वे उस मकान के पास गए तो देखा कि वह एक आलीशान हवेली जैसा था। उस मकान के भीतर रसोई के सारे सामान मौजूद थे, जैसे कि चूल्हे, बरतन, चाकू, आदि। लेकिन उस मकान में इंसान का नामो निशान नहीं था। यह देखकर हर किसी को बड़ा ताज्जुब हो रहा था।

वे लोग कुछ देर खुले में बैठे रहे और फिर हर किसी को थके होने कारण नींद आ गई। वे लोग दोपहर से लेकर शाम तक सोते रहे जब तक कि सूरज नहीं डूब गया। तभी उनके आस पास की जमीन जोर से काँपने लगी। उन्हें अपने ऊपर आसमान से बहुत शोर सुनाई देने लगा। फिर उनके सामने एक विशालकाय प्राणी प्रकट हुआ जो दिखने में इंसानों की तरह था। वह काला कलूटा आदमी बिलकुल ताड़ की तरह लंबा लग रहा था। उसकी दोनों आँखों से आग दहक रही थी। उसके दाँत किसी सूअर के दाँतों की तरह दिख रहे थे। उसका विशाल मुँह किसी कुँए की तरह दिख रहा था। उसके होंठ बिलकुल किसी ऊँट के होंठों की तरह थे जो उसकी छाती तक लटके हुए थे। उसके बड़े बड़े कान घंटे की तरह लटक रहे और इधार उधर हिल डुल रहे थे। उसके पैने नाखूनों के आगे शेर के नाखून भी बौन साबित हो जाएँ।

जब सिंदबाद और उसके साथियों ने उस भयानक प्राणी को देखा तो भय से ऐसा लगा जैसे उनके शरीर से आत्मा कूच कर चुकी हो। हर किसी को जैसे साँप सूँघ गया था। वह राक्षस आया और कुछ देर के लिए उस बेंच पर बैठ गया। उसके बाद उसने सिंदबाद को अपनी हथेली पर उठाया और फिर उसे उलट पुलट कर देखने लगा। सिंदबाद उसके लिए बस एक निवाले भर ही था, इतना विशाल था उसका मुँह। वह सिंदबाद को इस तरह से बारीकी से ठोक पीट कर देख रहा था जैसे कोई कसाई हलाल करने से पहले बकरे को देखता है। लंबे सफर की थकान के कारण सिंदबाद के शरीर पर गोश्त की कमी थी और वह काफी दुबला हो गया था। शायद इसलिए उस राक्षस ने सिंदबाद को जमीन पर छोड़ दिया और फिर किसी और को उठाकर जाँच पड़ताल करने लगा, जैसे कोई आँटी आलू बैंगन खरीदते वक्त करती हैं। वह बारी बारी से एक आदमी को उठाता, उसे उलट पुलट कर देखता और फिर नीचे जमीन पर फेंक देता था।

ऐसा कई आदमियों के साथ करने के बाद उसे उसकी पसंद का आदमी मिल ही गया तो खाते पीते घर का लगता था। उस राक्षस ने उस आदमी को जमीन पर पटका और अपने पैर से उसकी गर्दन मसलने लगा। एक ही झटके में उस बेचारे की गर्दन टूट गई और उसके प्राण पख्रेरु उड़ गए। फिर उसने चूल्हा जलाया और उस आदमी को अलट पलट कर पकाने लगा। अच्छी तरह पकाने के बाद राक्षस ने उसके हाथों और टाँगों को शरीर से ऐसे खींचा जैसे कोई तंदूरी मुर्गा खाते वक्त करता है। उसके बाद वह एक बेंच पर जाकर सो गया। उसके खर्राटों की आवाज बड़ी भयानक थी। वह पूरी रात सोता रहा और सुबह होने पर उठा और कहीं चला गया।

उसके जाने के बाद सभी लोग एक साथ बैठ कर अपनी किस्मत पर रोने लगे। उसके बाद वे लोग उस टापू पर छानबीन करने लगे ताकि छुपने की कोई जगह मिल जाए, या फिर भागने का कोई रास्ता। पूरे दिन भटकने के बावजूद उन्हें छुपने के लिए कोई माकूल जगह नहीं मिली और शाम हो गई। हर कोई अपना चेहरा लटकाए और भगवान भगवान करते हुए वहीं इकट्ठा हो गए।

तभी उनके आस पास की धरती फिर से काँपने लगी और थोड़ी ही देर में वह भयानक राक्षस उनके सामने प्रकट हुआ। उसने एक एक करके लोगों को उठाना और उसकी जाँच पड़ताल करना शुरु किया। फिर अपनी पसंद के एक आदमी को छाँटने के बाद उसके साथ वही किया जो पिछली रात को किया था। उस बदकिस्मत आदमी को अपना निवाला बनाने के बाद वह उसी बेंच पर सो गया और रात भर जोर जोर से खर्राटे भरता रहा। अगली सुबह वह उठा और ऐसे चलता चला गया जैसे कुछ हुआ ही न हो।

उसके जाने के बाद सिंदबाद और उसके साथी इकट्ठा हुए और आपस में बातें करने लगे। किसी ने कहा कि हम इस राक्षस को मारने का कोई न कोई तरीका जरूर निकालेंगे ताकि पूरी इंसानियत को इससे हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाए।

सिंदबाद ने कहा कि भाइयों उसे मारने से पहले हमें यहाँ से निकलने के बारे में भी सोचना पड़ेगा। इन लकड़ियों से हम अपने लिए नौका बनाएँगे। इस राक्षस को मारने के बाद हम उस नाव से यहाँ से निकल लेंगे और फिर देखेंगे कि ऊपरवाला हमें कहाँ ले जाता है। अगर रास्ते में हम डूब भी गए तो इस भयानक मौत से तो नहीं मरेंगे। अगर हम बच गए तो बहुत अच्छा, और अगर मारे गए तो शहीद कहलाएँगे।

सबने एक साथ हामी भरी और सिंदबाद की बात पर सहमत हो गए। उसके बाद हर कोई काम पर जुट गया। सबने लकड़ियाँ इकट्ठी की, उससे नावें बनाई, उन्हें किनारे पर समंदर में उतार दिया और उनपर जरूरी सामान लाद दिया। फिर सब लोग उस भवन के प्रांगण में लौट गए।

जैसे ही शाम हुई उनके आसपास की धरती फिर से काँपी और वही काला कलूटा राक्षस आता दिखा। वह फिर से लोगों को एक एक कर उठाने लगा, उनको अलट पलट कर देखने लगा और फिर अपनी पसंद के किसी एक को चुनकर उसका तंदूरी डिश बनाने लगा। अपना डिनर खत्म करने के बाद राक्षस उस बेंच पर सो गया।

राक्षस के सोने के बाद सिंदबाद और उसके साथियों ने लोहे के दो छड़ निकाले और उन्हें आग में तब तक गर्माते रहे जब तक वे तप्त लाल न हो गये। उन लाल गर्म छड़ों को लेकर वे लोग उस राक्षस के पास गए और उसकी दोनों आँखों में पूरी ताकत से घुसेड़ दिया।

आँखों में लाल सलाखें घुसने से उसे भयंकर पीड़ा हो रही थी और अब कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था। उसकी चीख सुनकर सभी लोग डरे हुए थे। राक्षस बेंच से उठा और फिर इधर उधर हाथ फिराकर लोगों को खोजने लगा। काफी देर मशक्कत करने के बाद भी एक भी आदमी उसके हाथ नहीं लगा। दर्द और गुस्से से वह पागलों की भाँति चीख चिल्ला रहा था। उसी अवस्था में वह दरवाजे की ओर भागा। सिंदबाद और उसके साथी उस राक्षस के पीछे हो लिए। लेकिन यह क्या? थोड़ी ही देर में वह अपनी ही डील डौल की एक औरत के साथ लौटा जो उससे भी अधिक भयानक लग रही थी।

जब सिंदबाद और उसके साथियों ने उस राक्षसी को देखा तो उनके होश उड़ गए। सबने लपककर नावों की रस्सी ढ़ीली कर दी और उनपर सवार होकर जितना हो सकता था उतनी तेजी से भागने लगे। दोनों राक्षस उनपर पत्थरों की बौछार करने लगे। उस हमले में सिंदबाद के अधिकतर साथी मारे गए। आखिर में सिंदबाद को मिलाकर केवल तीन लोग बच गए। कई दिनों के बाद उनकी नाव किसी टापू से जा लगी।

उस टापू पर वे लोग शाम होने तक चलते रहे। जब रात का अंधेरा छा गया तो वे लोग सो गए। उन्हें नींद आए थोड़ी ही देर हुई होगी कि एक विशाल साँप आया और उन्हें चारों ओर से घेर लिया। साँप ने उनमें से एक आदमी को निगल लिया, पहले उसका सिर भीतर गया और फिर पूरा शरीर। फिर साँप अपने रास्ते चला गया। यह देखकर सिंदबाद और उसके साथी की नींद हमेशा के लिए उड़ चुकी थी। जो भी मौत उनकी आँखों के सामने होती थी वह पिछली मौत से अधिक भयानक होती थी।

वे दोनों वहाँ से उठ खड़े हुए और आगे बढ़ने लगे। रास्ते में जो भी फल मिलते थे वे खा लेते थे और जरूरत पड़ने पर पानी पी लेते थे। इस तरह वे सारी रात चलते रहे। सुबह होने पर वे दोनों एक पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर चढ़ गए और वहीं सो गए।

जब रात हुई तो वह साँप फिर आ गया। ढ़ूँढ़ते ढ़ूँढ़ते वह साँप पेड़ पर चढ़ गया और सिंदबाद के इकलौते बचे साथी को निगल गया। उसके बाद साँप वहाँ से चला गया।

सिंदबाद डर के मारे पूरी रात जागता रहा। सुबह होने पर वह पेड़ से नीचे उतरा लेकिन मौत की खौफ की वजह से उसके पैर नहीं उठ रहे थे। उसका जी कर रहा था कि समंदर में कूदकर अपनी जान दे दे लेकिन जान देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। सिंदबाद ने कुछ लकड़ियाँ इकट्ठी की। बारी बारी से वह लंबी लकड़ियों को अपने पैरों, पेट, पीठ और सिर से इस तरह बाँध लिया कि उसकी चारों ओर लकड़ी का एक पिंजरा बन गया। उसके बाद उसने अपने शरीर को जमीन पर गिरा लिया और लकड़ी के उस पिंजरे के भीतर पड़ा रहा।

हर बार की तरह शाम होने पर वह भयानक साँप वहाँ पहुँचा और सिंदबाद के पास गया। लेकिन सिंदबाद के चारों ओर लकड़ियाँ बँधी होने के कारण साँप उसे छू भी नहीं पा रहा था। साँप चारों ओर चक्कर लगाता था और सिंदबाद को निवाला बनाने की कोशिश करता था। साँप चाहे जितनी कोशिश करता था उन लकड़ियों के कारण कुछ नहीं कर पा रहा था। ऐसा करते करते सबेरा हो गया और सूरज निकलने लगा। सूरज को देखते ही वह साँप वहाँ से फुफकारते हुए चला गया। साँप के जाने के बाद सिंदबाद ने अपने बंधन खोले और उस पिंजरे से बाहर आ गया।

उसके बाद सिंदबाद चलते चलते किनारे तक पहुँचा। कुछ ही देर में उसे एक जहाज गुजरता हुआ दिखाई दिया। सिंदबाद ने किसी पेड़ से एक डाल तोड़ी और उससे जहाज की तरफ इशारे करने लगा। जहाज पर के लोगों ने उसका इशारा समझ लिया और जहाज किनारे की तरफ आ गया। एक नौका भेजकर उन लोगों ने सिंदबाद को वहाँ से निकाल लिया और फिर उसके बारे में पूछताछ करने लगे। सिंदबाद ने उन्हें पूरी आपबीती सुनाई। उन भले लोगों ने सिंदबाद को पहनने के लिए कपड़े दिए और खाने के लिए भोजन दिया। भरपेट भोजन करने के बाद सिंदबाद की जान में जान आई और उसने उन लोगों को और ऊपरवाले को धन्यवाद दिया।

फिर उनका जहाज आगे बढ़ा और एक टापू पर पहुँचा जिसका नाम था सलाहित का टापू, जो अपने चंदन के पेड़ों के लिए मशहूर था। कप्तान ने वहाँ लंगर डाला और लोग वहाँ उतर गए ताकि सामानों की खरीद बिक्री कर सकें।

जहाज का मालिक सिंदबाद के पास आया और कहा कि तुम अजनबी हो और गरीब हो और तुमने बहुत मुसीबतें झेली हैं। इसलिए मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ ताकि तुम अपने मुल्क वापस पहुँच सको। बदले में तुम मेरे लिए इबादत करना। सिंदबाद यह सुनकर बहुत खुश हुआ।

उसके बाद जहाज के मालिक ने बताया कि हमारे साथ एक आदमी सफर कर रहा था लेकिन हमसे बिछड़ गया। हमें मालूम नहीं कि वह जिंदा भी है या नहीं क्योंकि आजतक उसकी कोई खबर नहीं आई है। हम उसका सामान तुम्हें देना चाहते हैं जिन्हें बेचकर तुम कुछ कमाई कर सकते हो। उसमें से कुछ सामान तुम्हें दे देंगे और बाकी का बचा हुआ सामान हम अपने पास रख लेंगे। बगदाद लौटने पर उसे बेचकर मिलने वाले पैसों को उसके परिवार वालों को दे देंग़े। सिंदबाद यह सुनकर बोला कि आपकी बड़ी कृपा है जो मुझपर इतना बड़ा अहसान कर रहे हैं।

जहाज के मालिक ने हम्मालों को आदेश दिया कि वह माल लेकर आएँ और सिंदबाद को सौंप दें। जहाज के क्लर्क ने पुछा कि उन गठरियों पर किस व्यापारी का नाम रहेगा। जहाज के मालिक ने बताया कि वह सामान सिंदबाद नाम के व्यापारी का था इसलिए रजिस्टर में उसका नाम चढ़ा दो।

जब सिंदबाद ने यह सुना तो वह भावुक हो गया और बोला अरे साहब इन गठरियों पर मेरा ही नाम लिखा है। मैं ही सिंदबाद हूँ। सिंदबाद ने उसे पूरी कहानी सुनाई और बताया कि कैसे वह अन्य लोगों के साथ एक टापू पर उतरा था। फिर खाने पीने के बाद उसे नींद आ गई थी और उसे छोड़कर जहाज वहाँ से चला गया था। उसने रुख चिड़िया के बारे में बताया और फिर हीरों के व्यापारियों से उसकी जो मुलाकात हुई थी उसके बारे में भी बताया।

जब जहाज के मालिक यह सब मालूम हुआ तो वह और भी खुश हुआ। उसने झट से सिंदबाद को गले लगाया और कहा जिसके साथ ऊपरवाला होता है उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता है।

उसके बाद सिंदबाद अपने माल को लेकर उस नगर में घूमा और सामानों की खरीद बिक्री की। उसके बाद वे लोग आगे बढ़ गए और विभिन्न टापुओं और शहरों में व्यापार करते गए। फिर घूमते घामते उनका जहाज बसरा पहुँचा जहाँ वे कुछ दिनों के लिए रुके। उसके बाद वह अपने शहर बगदाद पहुँच गया और अपने परिवार वालों और दोस्तों से मिला। उसके वापस लौटने की खुशी में पूरे परिवार ने जश्न मनाया और गरीबों में दान किया। उस सफर में सिंदबाद ने इतना मुनाफा कमाया था कि अपने सारे दुख दर्द भूल चुका था।