जंगल बुक पार्ट 2

बंदरों का अड्डा

हिंदी अनुवाद

अजय आनंद

वहाँ उस खंडहर में बंदर लोगों को मोगली के दोस्तों के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं थी। वे तो केवल इस बात से खुश थे कि उन्होंने कैसे उस बच्चे को उस खोये हुए शहर में लाया था। मोगली ने इससे पहले कभी भी किसी भारतीय शहर को नहीं देखा था।

हालाँकि वो एक खंडहर था लेकिन वह कमाल का लग रहा था। बहुत सालों पहले इसे किसी राजा ने बनवाया था। अभी भी वहाँ पर टूटे हुए गेट की ओर जाने वाले रास्ते के निशान बाकी थे। जंग लगे कब्जों से लकड़ी के कुछ अवशेष अभी भी लगे हुए थे। दीवारों पर जगह-जगह पेड़ उग गये थे। किले के बुर्ज टूटे और गिरे पड़े थे। मीनारों की दीवारों और खिड़कियों पर लताएँ लटक रहीं थीं।


Jungle Scene

पहाड़ी के ऊपर एक टूटा हुआ महल था जिसकी छत गायब हो चुकी थी। जहाँ कभी दरबार हुआ करता था वहाँ पर के आंगन और फव्वारे पर जगह-जगह लाल और हरे दाग लगे थे जो काई से आते हैं। जहाँ कभी राजा का हाथी खड़ा होता होगा वहाँ के पत्थर अब घास और पौधे उगने के कारण बीच से टूट चुके थे।

महल से शहर के मकान दिख रहे थे जिनकी छतें कब की टूट चुकीं थीं। वे छोटे मकान दूर से किसी मधुमक्खी के छत्ते की कोठरियाँ जैसे लग रहे थे। चौराहे पर एक बेढ़ंगा पत्थर दिख रहा जो कभी किसी मूर्ति के आकार में रहा होगा। नुक्कड़ों पर के गड्ढ़े इस बात की गवाही दे रहे थे कि वहाँ पर कभी कुँए हुआ करते थे।

पुराने मंदिरों के गुम्बद फूटे हुए थे जिनपर बरगद की डालें उग आईं थीं। बंदर लोग उस खंडहर को अपना शहर कहते थे और इसलिए जंगली जानवरों को नीची नजर से देखते थे। ये और बात है कि बंदरों को ये नहीं पता था कि उस शहर का निर्माण क्यों हुआ था और वहाँ किस प्रकार के लोग रहते थे। वे तो इतना भी नहीं जानते थे कि उस जगह का सही इस्तेमाल कैसे करें। वे राजा के दरबार में घेरा बनाकर बैठ जाते थे और अपना शरीर खुजाते हुए यह सोचते थे कि वे इंसानों जैसे लगते हैं।

कभी-कभी वे बगैर छत के घरों मैं दौड़-दौड़ कर पुरानी इंटें और प्लास्टर के टुकड़े जमा करते थे और फिर यही भूल जाते थे कि वे ऐसा क्यों कर रहे थे या उन्होंने वह ईंट कहाँ छुपाई थी। फिर वे आपस में झगड़ा करते हुए किकियाने लगते थे। इसके बाद वे झरोखे से राजा के बाग में तेजी से उतरते थे और वहाँ पर गुलाब और संतरे के पेड़ों को जोर-जोर से हिलाकर फूलों और फलों को गिरते हुए देखकर खुश हो लेते थे।

उन्होंने उस महल का एक-एक रास्ता, सुरंग और कमरा छान मारा था, फिर भी उनमे से किसी को याद ही नहीं रहता था कि किसने क्या देखा और क्या नहीं देखा। इसके बावजूद वे एक दूसरे से ये बातें करते कि वे किस तरह इंसानों की तरह अक्लमंद हो गये हैं। वे कुँए से पानी पीते समय पानी को मटमैला कर देते थे और फिर इस बात पर आपस में लड़ने लगते थे। इसके बाद वे एक झुण्ड बनाकर दौड़ने लगते थे और चिल्लाने लगते थे, इस जंगल में बंदर लोगों से अधिक बुद्धिमान, चतुर और सुशील कोई नहीं है। उनका यह खेल फिर से शुरु हो जाता था और तब तक चलता था जब तक वे उस शहर से बोर नहीं हो जाते थे। उसके बाद वे फिर से जंगल की ओर लौट जाते थे, इस उम्मीद में कि शायद जंगल का कोई जानवर उनकी सुध लेगा।